उस समय मेरी उमर १० साल की थी और मुझे ऐसा लगता है की हम बच्चों के लिए पहाडी समाज एक तरह से वरदान साबित हुआ। पहाडी समाज का फैलाव binary fission की तरह हुआ, बिष्ट अंकल के जानने वाले और फिर उन जानने वालो के जानने वाले सब इसमे शामिल होते गए और धीरे धीरे लगभग ३० के आसपास सदस्य हो गए। जब इतने सारे सदस्य हो गए तो एक कार्यकारी समिति बनाई गयी, जिसका काम था सांस्कृतिक और मनोरंजक कार्यक्रमों का आयोजन। उसके बाद दो तीन ऐसे घटनायें घटी जोकि मेरे मानस पटल में हमेशा हमेशा के लिए अंकित हो गयी। काफी विचार विमर्श के बाद समिति ने निर्णय लिया की सारे सदस्य लोग पिकनिक मनाने मानसर झील जायेंगे।
किस्सा मानसर झील का
तो भाई, दो बसें भर भर कर गाँधी नगर से मानसर के लिए चल पड़ी। हम लोग भी सपरिवार इस यात्रा में शामिल हो गए। बसों में गाने बजाने का भी पूरा आयोजन था, ढोलक और हारमोनियम दोनों ही उप्लभद थे। हमारे पापा को गाना गाने का शौक था और पहाडी संगीत के अच्छे ज्ञाता भी थे। इस तरह हम अपने लोक संगीत के आनंद लेते हुए एक घंटे के अन्तराल मैं अपने गंतव्य पर पहुँच गए।
मानसर एक छोटी सी झील है और उसके आसपास पिकनिक मनाने के लिए पार्क, बेंचेस आदि सब की सुविधा है। मानसर पहुँच के पहले तो सब लोगो को झील के चारो और चक्कर लगना होता है, यह एक तरह का दस्तूर सा हैं। तो वहां पहुंचते ही सब के दल बन गए, हमारी उमर के सारे लौंडे लाफादे भइया लोगो के साथ हो लिए। मम्मी लोग सारे आंटी लोगो के दल में शामिल हो गए, सारी दीदियाँ एक तरफ़ हो ली और पापा लोग अपनी मस्ती में मशगूल हो गए। जब झील का चक्कर लग गया तो हम सारे बच्चे गुड्डू भइया के मार्गदर्शन मैं निकल पड़े। गुड्डू भइया हमे सीडियों के पास लिए और वो सीडियां झील के पानी तक जाती थी। क्योंकि मानसर में मछली मारना मना है इसलिए वहां पर ढेर साडी मछलियाँ थी।
तो हम गुड्डू भइया की अगवाई में आगे चलते गए, क्योंकि वही सीडियों के आसपास काफी साडी मछली तैर रही थी इसलिए हम पानी में हाथ डाल कर उन्हें पकड़ने की कोशिश कर रहे थे। मैंने अपने दिमाग पर जोर डाला और मैं एक प्लास्टिक बैग का जुगाड़ कर लाया। और उसको पानी में डाल कर मछलियों को पकड़ने की कोशिश करने लगा। ढेर सारी मछलियाँ देख कर मुझे जोश आ गया और मैंने ज़ोर से मछलियों की तरफ़ बैग डाला, मेरा पैर फिसला और मैं पानी मैं अन्दर जा गिरा और गहरे पानी मैं जा पहुँचा, क्योंकि मुझे तैरना आता था और मैं ज्यादा दूर नहीं गया था। मैं तैर करके किनारे आ गया। लेकिन तब तक सोनू दौड़ कर मेरी मम्मी के पास पहुँच गया था और आंखों देखा हाल प्रसारित कर चुका था।
मुझे आभास सा तो गया था की अब होगी सुताई वो भी जम कर। मेरे कपड़े सारे भीग चुके थे और कपडों से एक दो मछलियाँ भी गिर पड़ी। जहाँ मैं पहुँचा था वहां एक कछुआ भी था जो पानी मैं मेरी उपस्थिति होते ही भाग खडा हुआ था, पर सोनू उर्फ़ महाभारत के संजय ने वह कह था की कछुआ मेरी टांग खीचने वाला था। मम्मी गभराई सी मुझे खोजती हुई आयी, मुझे सुरक्षित पा कर रहत की साँस ली। फिर हमको हमारे पिताजी के सामने प्रस्तुत किया गया और हमारे कारनामे का विस्तार पूर्वक विवरण दिया। मैं पानी से तर बतर था मुझे ठण्ड न लगे और मुझे एक सबक मिले, मुझे निर्वस्त्र होने का आदेश सुनाया गया। मैं वैसे तो पानी पानी था ही यह फरमान सुनते ही और पानी पानी हो गया, वहां मेरी उमर की कन्याएं मोजूद थी और पापा मुझे कपडे उतराने को कह रहे थे। मरता क्या न करता, अगर मना करता तो वही सब के सामने मेरी जय राम जी की हो जाती। अच्छा हुआ की मैंने उस दिन सिर्फ़ निक्कर ही नहीं पहनी थी , मेरे तन पर सिर्फ़ मेरी लंगोट रह गयी। सब लोग मस्त हो गयी किसी को मेरी व्यथा न समाज मैं आयी। सब लोग जानते तो थे की मैं उज्जड हूँ उस दिन यह प्रमाणित भी हो गया।
narayan narayan
ReplyDeleteआपने बहुत ही बढिया लिखा है....किन्तु एक सुझाव देना चाहूंगा कि पोस्ट को अगर थोडा छोटा रखें तो पाठक को भी सुविधा रहेगी......आभार
ReplyDeleteha! ha ! ha!
ReplyDeletebahut achcha sansmaran sunaya.
bachpan ki bahut si baaten kabhi nahin bhulti.
ha ha
ReplyDeletebahut maja aaya.
lag raha tha jaise malgudi days ki kahani pad raha hun.
" प्रक्रति की सुन्दरता से भरपूर एक सुंदर लेख....मेरी शुभकामनाये आपके साथ है आप भी जरुर मुझसे भी अच्छा लिख पाएंगे..."
ReplyDelete"wish you good luck"
regards
bandhu, bahut sahi ja rahe ho.
ReplyDeleteBadhte raho, chalte raho. Bade bhaisaab tumhare saath hai.
Crazy Professor