Tuesday 28 September 2010

पाठ्यकर्म और हिंदी का ह्रास

मुझे याद है की जब मैं पांचवी या छठी कक्षा में था तो हमारी हिंदी की पुस्तक में दो बहुत ही गुदगुदाने वाली कहानियां थी - चिकित्सा का चक्कर और साईकिल की सवारी. जब भी में बोर होता था तो उन अध्यायों को पढ़ लेता था और अपना मनोरंजन कर लेता था.
मुझे हिंदी पढने और लिखने का बहुत शौक है और इसीलिए मेरी यह हार्दिक इच्छा है की मैं अपनी मनपसंदीदा कहानियां एक बार फिर से पढ़ सकू. मैंने बहुत प्रयास किया लेकिन यह दोनों कहानिया अंतरजाल पर उपलब्ध नहीं है. किसी तरीके से मुझे सुदर्शन जी की साईकिल की सवारी मिल पाई है लेकिन चिकित्सा का चक्कर अभी तक नहीं मिल पाई है.
http://ia331224.us.archive.org/1/items/Cycle_395/sudarshan-cycle.म्प३
 
 जब में आजकल की युवा पीढ़ी से रूबरू होता हु तो मुझे कभी कभी बहुत अफ़सोस होता है यह जानकार की वह हिंदी पढने में अक्षम है. पता नहीं इसका कारण  क्या है ? क्या इसके लिए मीडिया दोषी है या फिर शिक्षकगण या फिर पाठयक्रम. आजकल सारा पाठ्यक्रम  बदल गया है किताबों में न तो परसाई जी के कोई व्यंग्य है और न सुदर्शन जी के. वैसे ही गध्य अध्ययन में प्रेमचंद या फिर संकृत्यायन जी के कोई लेख.

कभी कभी सोचता हूँ की अगर हिंदी का इसी तरह ह्रास होता रहा तो क्या हिंदी भी बाघ की तरह लुप्त होने के कगार पे पहुँच जाएगी?

मेरे परम मित्र के छोटा भाई है उसको अंग्रेजी गाने और सहित्य का बहुत शौक है, टॉम हंक्स का दीवाना है लेकिन आप उस से देव आनंद के बारे में पूछो तो कहता है
"भय्या मुझे हिंदी फिल्मे देखना पसंद नहीं है "
उसको सड़ी से सड़ी अंग्रेजी फिल्म दिखा लो देख लेगा.

पता नहीं मुझे क्यों ऐसा लगता है की युवा पश्चिमी सभ्यता की और ज्यादा आकर्षित होता जा रहा है. सिगरेट और शराब पीना आधुनिकता के प्रतीक माने जाने लगे है. हिंदी में वार्तालाप करना गंवारपन की निशानी है, अगर आपका रूझान शास्त्रीय संगीत की और है तो आप बोर है, अगर आप पारंपरिक परिधान पहनते है तो आप बेहेंजी टाइप या फिर गंवार है.

http://www.facebook.com/#!/video/video.php?v=400396119312&ref=mf
इस चलचित्र में एक माँ अपने से पुत्र से अंग्रेजी में बतियान रही है और वह अपनी माँ को समझने में अक्षम है. लोग इसको देख के हस्ते है पर मुझे तो बड़ा क्षोभ  होता है क्युकी शायद हम भारतीय ही हैं   जो अपने बच्चों के साथ विदेशी भाषा में बतियाते है.


ऐसा प्रतीत होता है की भले ही हम गुलाम नहीं रहे पर मानसिकता अभी भी वही है.
ps :  अगर किसी महानुभाव को हरिशंकर जी की चिकित्सा वाले लेख का कोई लिंक ज्ञात हो कृपया मार्गदर्शन करें

1 comment:

  1. एक अच्छ बात हाल ही में सुनी...एक सज्जन कह रहे थे कि आजकल ये भी एक स्टेटस सिंबल है कि हिंदी वाले खुलकर और तनकर कहते हैं..मुझे अंग्रेजी नहीं आती।

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