Saturday 28 March 2009

तेंदुलकर और मैं


क्रिकेट ज्यादातर हिन्दुस्तानियों के जीवन का अटूट हिस्सा है। इसलिए जब २००७ विश्व कप मैं ब्रियन लारा ने सन्यास की घोषणा करी तो मेरा मन दुखी हो चला। एक एहसास हुआ की एक पीढी बीत गई । मैंने अपने परम मित्र राका को फ़ोन लगाया की "यार हम कितने lucky है की हम को लारा और तेंदुलकर जैसे बल्लेबाजो को खेलते हुए देखने का मौका मिला"। राका ने हु हां करी और मुझे बोला पकाओ मत और फ़ोन काट दिया।

अभी कुछ दिन पहले एक सज्जन मिले और कहने लगे की सचिन एक महान बल्लेबाज नहीं है और द्रविड़, सहवाग कहीं बेहतर है। मैं उनके इस तर्क से बिल्कुल भी सहमत नहीं था, क्योंकि खेल एक मनोरंजन का माध्यम है और पिछले २० साल मैं जितना मनोरंजन हमे सचिन ने दिया है वो और किसी क्रिकेटर ने शायद ही दिया हो।

टीवी देखने मैं मेरा कोई सानी नहीं है। मैं एक दिन मैं बिना ब्रेक लिए घंटो टीवी देख सकता हूँ। 1989  में मैं  नवीं कक्षा में पढ़ रिया था । उन दिनों हमन पंजाब केसरी में पढ़ा की सचिन नाम का एक लड़का क्रिकेट में रिकॉर्ड बना रह हैं, धीरे धीरे सचिन के बारे में समाचारपत्रों में जिक्र बढ़ने लगा । एक ख़बर यह भी आई  की सचिन को carribean  जाने वाली टीम में इसलिए  शामिल नही किया जाएगा, क्योंकि चयनकर्ताओं को डर है की इतना छोटा लड़का तेज गेंदबाजों को नहीं खेल पायेगा।

 सचिन ने इस दौरान बॉम्बे के लिए अपना पहला रणजी मैच खेला और उसमे शतक ठोक दिया। सचिन की प्रतिभा को नज़रंदाज़ करना चयनकर्ताओं के लिए ज्यादा समय तक सम्भव नहीं हो पाया और अंतत पाकिस्तान जाने वाली टीम में शामिल किया गया। उन दिनों टीम के कैप्टेन श्रीकांत जी थे, लेकिन वो टीम बड़ी संतुलित थी खासकर की बल्लेबाजों के मामले में।

हमारे पिताजी भी क्रिकेट के शौकीन थी, और भारत-पाकिस्तान का मैच न देखना तो पाप होता। पहला one day match बारिश के चलते सिर्फ  बीस ओवर का कर दिया गया। मुझे इतना याद है की आखरी पाँच ओवर में भारत को पचास से ज्यादा रन चाहिए थे और भारत के पाँच विकेट गिर गए थे और मैच एक तरह से हारा जा चुका था।
मुश्ताक अहमद  जोकि लेग्स्पिन्नेर था बोलिंग कर रह था और मैदान  पर एक सोलह साल का लड़का बैटिंग करने आया। किसी को एक रती भनक नही थी की क्या होने वाला हैं? सचिन ने शायद उस ओवर में ३ छक्के उडाये। अब्दुल कादिर जोकि उस समय के shane warne हुआ करते थे, मुश्ताक़  के पास गए और बोले  " अभी तुम बच्चे हो, देख में इसे कैसे आउट करता हूँ"। वो कदिर जी की सबसे बड़ी भूल थी, क्योंकि सचिन ने उनको और लंबे छक्के मारे और १७ गेंदों में अपना अर्धशतक पूरा किया, जोकि एक और कीर्तिमान होता, लेकिन वो मैच अधिकारिक रूप से माना  नहीं गया। सचिन भारत को मैच तो नहीं जीता पाया लेकिन उसने क्रिकेट जगत में अपने आगमन का  एलान कर दिया। अगले 23 साल तक इस खिलाड़ी ने हमें ढेर सारे ऐसे क्षण दिए जो कभी भुलाये नहीं जा सकते.

उन अविस्मरनीय क्षणों में हैं, हीरो कप का वो अन्तिम ओवर जब सचिन ने कहा की वो आखरी ओवर करेगा और मक्मिल्लन से उस ओवर में २ रन न बने, और भारत ने अगले मैच में वेस्ट इंदीएस को हरा कर कप जीता। शारजाह में तूफ़ान के बाद की बल्लेबाजी जब सचिन ने ऑस्ट्रलियाई गेंद्बजोंकी जम कर धुनाई करी और भारत को कप जीताया। टेस्ट मैच में मुझे सचिन की पाकिस्तान के ख़िलाफ़ १५५ रनों की पारी हमेशा याद रहती थी। सचिन के  विरुद्ध  कहने वाले कहते हैं की वो मैच जीताने में असफल रहा पर आप कितने ही बड़े खिलाड़ी क्यो ना हो आउट होने के लिए एक ही गेंद काफ़ी होती हैं। सचिन ने नयन मोंगिया के साथ मिलकर वो मैच जीत के करीब तो पहुँचाया परन्तु अजहर एवं द्रविड़ ने तो बिलकुल भी प्रयास नहीं किया। मेरे एक मित्र जो ड्रेसिंग रूम से परिचीत थे उन्होंने बताया की सचिन उस दिन फूट फूट के रोया था।

कौन भूल सकता है, सचिन और shane warne का १९९८ का मुकाबला? उन दिनों में होटल एम्बेसडर बॉम्बे में काम करता था। ऑस्ट्रलियाई टीम का पहला मैच बॉम्बे के विरुद्ध था। होटल के टॉप floor से पूरा स्टेडियम दीखता था। मैं  वहां से खड़ा हो कर मैच देखता रहता था, उस मैच में सचिन ने वार्न की बहुत पिटाई करी और उसे छक्के छक्के उडाये। मेरी फोटो midday अखबार में छपी थी पेज ३ में वो भी with the caption" peeping chef". उस श्रृंखला में अकेले सचिन ने ही ऑस्ट्रेलियाई टीम की धज्जियाँ उड़ा दी थी।


उसके बाद waugh की महान टीम आई अन्तिम किला फतह करने के लिए, यह सही हैं की उस समय भारत एक टीम की तरह खेला और सोरव की कप्तानी बेहतरीन थी। चूँकि मैं उस समय बॉम्बे मैं ही था, मुझे अवसर मिला पहला मैच देखने का, जोकि वानखेडे मैं था। भारत की हालत उस मैच मैं खस्ते हाल ही थी, वो मैच का तीसरा दिन था, और भारत को शायद डेड सौ से ऊपर की लीड थी। भारत के पहले दो विकेट सस्ते मैं निकल गए। सचिन खेलने आया और सारे क्षेत्ररक्षक सीमारेखा पर खड़े हो गए। सचिन ने आनन् फानन मैं ४ चौके जड़ दिए। steve ने गेंद अपने भाई मार्क को दी, सचिन ने एक जोर का शोट मारा, जोकि लंगर के कंधे पर लगा और फिर रिक्की पोंटिंग के हाथों मैं जा गिरा। आधा स्टेडियम खली हो गया और भारत के बचे विकेट ताश के पत्तों की तरह बिखर गए। मुझे  है की बहुत सालों तक भारत की हार जीत पूर्णत सचिन पर ही निर्भर करती थी और सचिन का विकेट मानों भारत की हार।

मेरा ब्लॉग वो सारे क्षणों और घटनायों का वर्णन नहीं कर सकता हैं। लेकिन मैं अपने को बहुत सौभाग्यशाली समझाता हूँ की मुझे सचिन से खिलाड़ी को खेलते देखने का मौका मिला। सचिन ने कभी घमंड नहीं दिखाया न ही वह कभी अपने लिए खेला। अपने पूरे करियर में सचिन पर एक ही बार आरोप लगा (ball tempering ) का वो भी मिथ्या। मैंने टेस्ट मैच का कभी भी बड़ा फेन नहीं रह परन्तु मैंने टेस्ट मैच देखे और सिर्फ सचिन को खेलते देखने के लिए।

सब चीज़ों की तरह सचिन भी अपने चरम को छु चुका हैं पर जो ऊँचाइयों तक वो पहुँचा, वह किसी और के लिए पहुँच पाना शायद सम्भव न हो. सचिन जैसा कोई खिलाड़ी न तो कभी हुआ है और न कभी होगा भले ही Anderson एवं panesar 40 साल के सचिन को लगातार आउट करने में सफल रहे पर मैं   की 30 साल की  में सचिन ने इन गेंदबाजों का क्या हाल बनाया होता।

If cricket was my religion then Sachin was my God! For me cricket will never be same without the master. Long live the legend.

3 comments:

  1. भाई मेरे दिल की बात छीन ली. सपेसिअल्ली जब आपने कहा, की हम लोग लुच्क्य है जो सचिन को खेलते हुयी देखा है.

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