Thursday 30 September 2010

तो मेनू की ( मुझे क्या फर्क पड़ता है?)

 ( यह दृष्टिकोण एक नास्तिक का है और मेरा आस्तिक लोगो को आहात करने का कोई इरादा नहीं है)


मंदिर बने या मस्जिद या फिर गुरुद्वारा या गिरिजाघर उस से मुझे क्या फरक पड़ने वाला है.
मुझे मंदिर गए बहुत समय हो गया है वैसे भी मैं नास्तिक हूँ और धरम से मेरा दूर दूर का वास्ता नहीं है. दान पुण्य में करता नहीं हूँ खासकर के जब वह धर्म के नाम पर हो तो बिलकुल भी नहीं.
मेरा उन हिन्दुओं से जो आजके फैसले से प्रसन्न है एक ही सवाल है कि वह मंदिर एक हफ्ते में कितनी बार जाते है और कितना दान पुण्य करते है.

यहाँ derby में भी एक हिन्दू मंदिर है. एक दिन वहा के पंडित जी से मेरी बातचीत हो रही थी. (पंडित से मेरी मित्रता थी) तो वह कह रहा था कि हमारे यहाँ दान्कोश में छुट्टे पैसे निकलते है और गुरूद्वारे जाओ तो वहा कागज़ के नोट ज्यादा निकलते है. यहाँ पर जितने हिन्दू मित्रगण भी साल में विरले ही मंदिर का रुख करते है. मंदिर कि अर्थव्यस्था गुरूद्वारे के समक्ष बहुत ही कमजोर है. पंडित जी तो यहाँ तक कह रहे थे कि इस मंदिर का निर्माण भी गुरूद्वारे के दिए हुए दान के चलते ही पूरा हो पाया.

http://ibnlive.in.com/videos/132050/y-not-mood-of-the-young-and-old-in-ayodhya.html
ऊपर दी गई विडियो क्लिप अयोध्या के लोगों के उदगार है. मैं कभी अयोध्या गया भी नहीं हूँ और न ही मेरे परिवारजन. अगर यह मंदिर बन भी जाता है तो अयोध्या शहर का जो बुनियादी ढांचा इतने बड़े हिन्दू तीर्थ का बोझ सह पायेगा? और जैसे कि सावल उठाये है अयोध्या वासियों ने कि उन्हें इससे क्या लाभ होगा?
या फिर जो लोग राम लाला का मंदिर बनाने से खुश होंगे उन्हें उस से क्या मिलेगा?

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