Sunday 17 January 2010

बम्बई से गोवा



कॉलेज पास करने के पश्चात हम अब बेरोजगारों की श्रेणी में आ चुके थे. कॉलेज के होनहार छात्र एवं छात्राये अच्छे पदों को प्राप्त कर चुके थे और हम जैसे निखट्टू मैं, राका, नथु, सांगा अभी भी दर दर की ठोकरे खा रहे थे. जॉब हंट के लिए मेरा और राका का अगला पड़ाव सैलानियों की राजधानी और कबाब, शबाब और शराब की जन्नत गोवा था!

हमारा गोवा जाने का उद्देश्य सिर्फ नौकरी की तलाश ही नहीं अपितु सैर सपाटा भी था. अब तक मैं सिर्फ समंदर के सपने ही देखते आया था और अब उसको असल में देखने का समय आ गया था. (वैसे समंदर बम्बई में भी है परन्तु गोवा वाला मज़ा नहीं है! )

हम दोनों की आर्थिक स्थिति तो कुछ खास अच्छी नहीं थी, मेरे पास शायद ७००-८०० रूपए होंगे और राका मुझसे भी ख़राब अवस्था में था. भाइयो और बहनों उस समय ए टी म कार्ड नहीं होते थे अर्थात अगर पैसे ख़तम हो गए तो भीख  मांगनी या फिर बर्तन मांजने पड़ते.

खैर हमने सबसे सस्ते जाने के चक्कर में दादर से जाने वाली कदम्बा ट्रावेल्स की टिकेट खरीद ली और दिन के ढाई बजे बस में जा के बैठ गए. वैसे तो बस का सफ़र १४-१५ घंटे का था और अगले दिन सुबह ७ बजे का गोवा आगमन था. राका पहले गोवा जा चूका था लेकिन मेरी पहली ट्रिप थी और मेरा दिल  भीतर ही भीतर कुलांचे मार रह था.

सब कुछ बढ़िया चल रह था. बॉम्बे से गोवा का रास्ता बड़ा ही मनोरम है भले ही आप ट्रेन से जाये या बस से. गोवा पहुँचने से ठीक दो घंटे की दूरी पर हमारी बस ख़राब हो गयी. मालूम पड़ा कदम्बा ट्रावेल्स के लिए ये कोई नई  बात नहीं थी और अक्सर ऐसा होता रहता था. बस को ठीक होने में ४ घंटे लग गए और हमें  अपने गंतव्य बानोलिम बीच  तक पहुँचने में अगले दिन के ढाई बज गए.

गोवा में हमरे कुछ seniors लीला होटल में कार्यरत थे - अथर  एंड चोबे सर...., राका ने जुगाड़  करा रखा था और हमारे रूकने का इंतजाम  इन्ही के पास था. चोबे सर ने हमारा गरम जोशी से स्वागत किया और हमें  यकीन दिलाया की चिंता करने की जरूरत नहीं है, आराम से रुको और नौकरी खोजो.

गोवा पहुंचते ही में बावला हो  गया और समन्दर का नीला नीला पानी देख और श्वेत रेत को  देख बौरा सा गया. मैंने राका से कहा भाई सबसे पहले हम तैरने जायेंगे. हमने अपने अपने कच्छे  पहने और दौड़ चले समंदर की तरफ जोकि चौबे सर के घर से पल भर की दूरी पर था.

सूरज चमक रहा था, समंदर का नीला पानी और सफ़ेद रेत   मुझे चीख चीख के पुकार रही थी.... आओ  और आके मेरा आनंद लो. मैं दौड़ता हुआ पानी में घुस गया.  यह क्या!   मेरे मुंह में नमकीन पानी चला गया.  एक ज़ोर की लहर आयी और मैंने गोता खाया और पानी पीया. इतना अनुभव बहुत था. समंदर को लेके मेरे मन में जीतने सुन्दर स्वपन थे सब चकनाचूर हो  रहे थे.

मैंने कहा भाई राका चलो मज़ा नहीं  आ रहा है.
राका बोला : का हुआ बे, तुम तो बहुत उतावले हो रहे थे पानी में कूदने के लिए, अब तैरो.
अबे ज्यादा चै चै न करो और चलो.., दीमाग मत चाटो साले  ......

पानी से बहार निकलते ही किनारे की रेत पैरों से चिपकने लगी, सोचा की घर आके नहा लेंगे इसलिए सीधे घर ही आ गए. घर पहुंचे तो हर जगह रेत ही  रेत हो गए.
चोबे सर बोले: अबे क्या कर रहे हो तुम लोग, सारे घर की वाट लगा दी हैं.
सॉरी सर, अभी साफ़ कर देंगे.

कच्छा उतरा तो और रेत निकल आयी, बाथरूम पूरा रेत से भर गया, नाली  ब्लाक हो गयी. चोबे सर को मालूम पड़ा तो आग बबूला हो गए. और बोले
" अबे राका यह किस नौटंकी को पकड़ लाये हो बे"

वो दिन है और आज है मैंने फिर कभी समंदर स्नान का नाम नहीं लिया और मन ही मन कह " भैया हमरी गंगा  जी ही  सबसे बढ़िया है, निर्मल शीतल मीठा और बिना रेत का जल.

गोवा आने का प्रयोजन तो नौकरी खोजने आये थे लेकिन राका बड़ा ही निकम्मा था और सिर्फ मौज मस्ती के लिए है उसमे फुर्ती  आती थी. हम एक सप्ताह गोवा रहे और हमने घूमने और लफंदर गिरी के सिवा कुछ और नहीं किया.

जाने  के  दिन करीब आ रहे थे और फिर से नाकामी हमारे साथ चलने को  तयार थी.

जारी रहेगा ........

4 comments:

  1. hahaha abeey purane din bhi badiya theey beey....athur sir bhi theey goa mei right??BTW ganga ka pani bhi kuch khaas nahi hai..ek baaar mere pure peeth mei dane dane ho gaye they kanpur mei nahane ke baad.lol..
    good time pass reading.thnks bey.

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  2. by ganga i meant ganga of haridwar.

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  3. very interseting...... baaki ki story kab aayegi??

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  4. very soon, ihave been bit busy lately but after exams will be writing again

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